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संघ अक्सर भारत को समझने में भूल कर बैठता है

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संतोष सिंह (संपादक) – टाइम्स आंफ स्वराज

संघ अक्सर भारत को पहचानने में भूल कर जाता है और यही वजह है कि सौ वर्ष बाद भी संघ भले ही राजनीतिक सत्ता प्राप्त कर लिया हो लेकिन जिस सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बात करता है वो उसके आस पास भी नहीं पहुंच सका है ।

फिल्म #आदिपुरुष के माध्यम से इन बातों को समझा जा सकता है। रामनवमी के जुलूस में या फिर गाड़ी के पीछे हनुमान की वो डरावनी वाली तस्वीर लगाए हुए क्या देख लिया संघ को लगा कि भारत अब ऐसा ही सोचने लगा है। राम की वो तस्वीर जिसमें राम आक्रमणकारी दिख रहे हैं। कुछ लोग पसंद क्या करने लगे उन्हें लगने लगा कि आज की पीढ़ी ऐसे ही राम देखना चाहते हैं।

अमित मालवीय, संबित पात्रा , नुपुर शर्मा जैसे लोगों को कुछ लोग पसंद क्या करने लगे संघ को लगा देश बदल गया है. अर्णव गोस्वामी चित्रा त्रिपाठी ,अंजना ओम कश्यप, राहुल कवल जैसे एंकर को देखने क्या लगे संघ को लगा देश बदल गया है. बागेश्वरधाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री को सुनने चार पांच लाख लोग क्या आ गये संघ को लगा देश बदल गया है ? गांव-गांव में शिव चर्चा की लोकप्रियता क्या बढ़ गयी संघ को लगा देश सचमूच बदल गया है… लेकिन संघ के इस सोच का कबाड़ा फिल्म आदिपुरुष के आने के बाद निकल गया देश और देश के बाहर नेपाल जैसे तथाकथित हिन्दू राष्ट्र में भी आलोचनाएँ हो रही है उसके संवाद को लेकर हनुमान और राम के चरित्र और चेहरे को लेकर। समझ लीजिए कंगना रणावत जैसी हिरोइन भी इस फिल्म की आलोचना कर रही है जरा सुनिए फिल्म ‘#आदिपुरुष’ के डायलॉग पर राइटर मनोज मुंतशिर क्या कह रहे हैं ने ‘बड़े-बड़े कथावाचक इसी भाषा में कथा सुनाते हैं.’ इसलिए मैने इस तरह के भाषा का इस्तामल किया ताकि लोग आराम से समझ सके।

       
मनोज का यह संघ का सोच है उस कौन कहे इस देश में कई लोग रावण को बुराई का प्रतीक मानते हैं, तो कई लोग इज़्ज़त से भी देखते हैं.  कई लोग रामचरितमानस को धार्मिक किताब मानते हैं तो कई लोग साहित्य के तौर पर भी देखते हैं।
            
इसी भारत में राम और उनकी कहानी के हज़ारों तरह से लिखी गयी  हैं. एक दूसरे से एकदम अलग है. वाल्मीकि रामायण के राम और तुलसीदास के राम के चरित्र में ही बहुत बड़ा फर्क है।

            फिर भी कोई उन कहानियों को लेकर आपस में लड़ता नहीं है. लेकिन ट्विटर पर और सोशल मीडिया पर एक अलग समाज बसता है जिसकी वजह से लगता है कि पूरा भारत एक सिविल-वॉर में है और संघ यही मात खा जाता है।

फिर भी आदिपुरुष को फिल्म की तरह देखिए भावना में बहने की जरूरत नहीं है वैसे इस स्तर पर पहुंचने की वजह भी हम आप ही है ।

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